परिकल्पना है समाज के उनलोगों के लिए कुछ करने की जिन्होंने बहुत कुछ करने के बाद विश्राम की सोची थी पैर पता चला मंजिल पर पहुच केर यह तो मृगमरीचिका थी,अभी और चलना है चलते रहना है
वरिष्ट जन विरासत है समाज के समय सम्पन्नता
अनुभव को सहेजना है कुछ पाने की तम्मना है तो बढे चलो
1 comment:
what is this? a comment on my blog but appearing on your blog. ravindra Kumar Pathak
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