Saturday, April 30, 2011

गुरूजी को पत्र

परम आदरणीय गुरूजी/मोहिनिजी
जीवन के एक साल और कम हो गए जीवन चक्र चलता रहा है चलता रहेगा वेदना आंसू या सिसकियो में न दिखाई दे अनुभूति और भाव बताते है आहत होने के कारन, मैं न वैज्ञानिक हू न लेखक न समाजशास्त्री न सुधारक मै तो साधक हू ,
मेरी अहमियत कुछ भी नहीं धन बल ज्ञान सफलता के सूत्र है पैर भगवती सबको सब कुछ नहीं देती मिलता सबको है किसी को कम किसी को ज्यादा जीवन के अंतिम पड़ाव में बहुत उम्मीद है आपसे दर्द एक सा है ,अभिव्यक्ति अलग अलग,
वरिष्ठ समुदाय केंद्र या वृधाश्रम की स्थापना में योगनुसंधान केंद्र उत्तम स्थान है लगभग एक सौ से अधिक वृद्धों ने जिनमे आप दोनों भी सामिल है अपना अमूल्य समय धन सहयोग सबकुछ दिया है
आज सहयोगी अगर कोई युवा भी है तो दें वृद्ध की ही देंन है रोग और इलाज की आवस्यकता भी उन्ही को है इनके पास धन अनुभव और समय तो है सोंच को सच करने की सामर्थ्य नहीं इसके लिए न्रेतित्व आपका और युवा बल की आव्श्यकता है ,
मार्गदर्शन की अपेक्छा में

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