Saturday, November 23, 2013

कलयुग यानी कला का युग, जिसके पास कला है, वही सफल है

कलयुग यानी कला का युग, जिसके पास कला है, वही सफल है, कोई भी कला हो, कलयुग में कला ही काम आने वाली है, कलयुग में सब कलाकार हैं, यहाँ पर सब अपनी कला का प्रदर्शन करके पैसा और ख्याति प्राप्त करते ...
'आस्तिक' व 'नास्तिक' शब्दों की उत्पत्ति क्रमश: 'अस्ति', जिसका अर्थ 'होना' या 'है' व 'न अस्ति', जिसका तात्पर्य 'न होना' या 'नहीं', माना जाता है, हम जिसे मानते हैं, जिसकी सत्ता को स्वीकारते हैं तो हम आस्तिक हुए और नहीं मानते तो नास्तिक. क्या तुमने देखा है ईश्वर को? मुझे दिखा दो तो मैं भी अभी से मानने लगूंगा.. अब कहाँ से लाओगे उनके सामने ईश्वर को? ये कलयुग है, यहाँ सच्चे इंसान तो खोजना बहुत मुश्किल है फिर ईश्वर कैसे दिखाओगे ऐसे लोगों को? कलयुग :- यानी कला का युग, जिसके पास कला है, वही सफल है, कोई भी कला हो, कलयुग में कला ही काम आने वाली है, कलयुग में सब कलाकार हैं, यहाँ पर सब अपनी कला का प्रदर्शन करके पैसा और ख्याति प्राप्त करते ... हर किसी के अपने-अपने तंत्र हैं, नए भविष्य निर्माण के लिए सबसे पहला कदम है अपनी कमियों को समझ कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना. हम जो भी करें, उसके लिए हमें शांत, संयमित होना चाहिए. साथ ही अपने कर्मों का सजग रह कर विश्लेषण भी करना चाहिए. अगर हम कमियों को हमेशा सही ही साबित करेंगे तो हम कभी भी अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पायेंगे और न ही भविष्य को संवार पायेंगे. हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मों ने ही वर्तमान की विषम परिस्थितियों को पैदा किया होता है और हमारे अन्दर नकारात्मक कर्मों के लिए प्रवृत्ति भी पैदा की होती है. यदि हम उस प्रवृत्ति में बहते जायेंगे तो भविष्य और बिगड़ता ही जाएगा. अतः सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है अपनी कमियों को समझना. तंत्रशास्त्र के सिद्धांतानुसार कलियुग में वैदिक मंत्रों, जपों और यज्ञों आदि का उतना अधिक फल मिलना कठिन है जितना तंत्र प्रयोगों से संभव है। कलयुग में सब प्रकार के कार्यों की सिद्धि के लिए तंत्र शास्त्र में वर्णिक मंत्रों और उपायों आदि से ही सफलता मिलती है। तंत्र शास्त्र मुख्य रूप से शाक्तों (देवी-उपासकों) का है और इसके मंत्र प्राय: एकाक्षरी होते हैं वैदिक क्रियाओं और तंत्र-मंत्रादि विधियों को भगवान शंकर ने स्वयं कीलित किया है और भगवती उमा के आग्रह से ही कलियुग के लिए तंत्रों की रचना की है।
किन्तु तंत्र शास्त्र के अनुसार दीक्षा ग्रहण करने के बाद ही तांत्रिक प्रयोग करना चाहिए। बिना दीक्षा के तांत्रिक कार्य करने का अधिकार नहीं है। दीक्षा के पूर्व गुरु शिष्य की परीक्षा ले के यह निर्णय कर लेता है की शिष्य समाज में सही सन्देश पहुचायेगा क्या गोपनीय रखना है क्या बताना है क्यों की ये सभी जानती हैं कुछ भी परोसने के लिए अक्ल की आवस्यकता है क्योंकि वो जितनी फायदेमंद है उससे कई गुना नुकसान प्रद ये व्यक्ति विशेष का मामला है . तलवार की धार पर चलने के समान तंत्र-विद्या के कठिन साधन हैं । उसके लिए साधक में पुरुषार्थ, साहस, दृढ़ता, निर्भयता और धैर्य पर्याप्त होना चाहिए । ऐसे व्यक्ति सुयोग्य अनुभवों गुरु की अध्यक्षता में यदि स्थिर चित्त से श्रद्धापूर्वक साधना करें तो वे अभिष्ट साधन में सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं । परन्तु यदि निर्बल मनोभूमि के-डरपोक, संदेही स्वभाव वाले, अश्रद्धालु, अस्थिर मति किसी साधन को करें और थोड़ा-सा संकट उपस्थित होते ही उसे छोड़ भागें, तो वैसा ही परिणाम होता है जैसा कि किसी सिंह या सर्प को पहले तो छेड़ा जाय पर जब वह कुद्ध होकर अपनी ओर लपके तो लाठी-डण्डा फेंककर बेतहाशा भागा जाय ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
त्वयाति गोपितव्यं हि न देयं यस्य कस्यचित्॥
''इन साधना-विधियों को यत्नपूर्वक गुह्रा रखो-गुप्त रखो । इनको अपने तक ही सीमित रखो, किसी ऐसे-वैसे को मत बताओ ।''
विघ्न-बाधाएँ हमारी सफलता के सहायक हैं, अवरोध नहीं पूर्ण निष्ठा, आस्था और श्रेष्ठ क्रिया विधि के साथ किया गया कर्म निष्फल नहीं जाता।

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