Saturday, November 23, 2013

अगर बत्ती जलाओ या मोम बत्ती ./

कृष्ण कहते हैं की परमात्मा की शरण मे जाओ! बुद्ध कहते हैं किसी की जरूरत नही, अप्पो दीपो भव, अपना प्रकाश खुद जलाएं! कबीर भी कहते हैं "तेरा साई तुझमे है तू जाग सके तो जाग"! किसी सूफ़ी ने भी कहा है की "जर्रे जर्रे मे उसी का नूर है"! हिन्दू भी यही कहता है की कण कण मे परमात्मा बस्ता है! पश्चिम के धर्मो ने एक मुहम्मद, एक मूसा और एक ईसा पैदा किया! और यहाँ भारतिय उपमहाद्वीप का अनुभव ???????????????????
धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है।
धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है।आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है। शाकाहार किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना ज़रूरी नहीं है, शाकाहार को सात्विक बेहतर आहार माना जाता है।मांसाहार को इसलिये अच्छा नही माना जाता,क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है, अत: तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में केवल यज्ञ मे मारे गये पशुओं का मांस खाने की अनुमति थी, क्योंकि उनका मांस वैदिक मन्त्रों द्वारा शुद्ध होता था, और उसे मांस नहीं "हवि" कहा जाता था। एक सर्वेक्षण के अनुसार आजकल लगभग 30% हिन्दू, ज़्यादातर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। जो हिन्दू मांस खाते हैं (बकरा, मुर्गा या मछली), कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।
इस्लाम केवल एक ही ईश्वर को मानता है, जिसे मुसल्मान अल्लाह कहते है ।उनके लिए क़ुरान पर आधारित ज्ञान ही श्रेष्ठ है हज़रत मुहम्मदअल्लाह के अन्तिम और सबसे महान सन्देशवाहक (पैग़म्बर या रसूल) माने जाते हैं । इस्लाम में देवताओं की और मूर्तियों की पूजा करना मना है दो भागो मे विभक्त मानव जाती का एक समूह ईश्वरीय दूतो के बताए हुए सिद्दन्तो के द्वारा अपना जीवन समर्पित(मुस्लिम)होकर सन्चालित करते । दूसरा समूह जो अपने सीमित ज्ञान(अटकल,अनुमान)की प्रव्रत्ती ग्रहण करके ईश्वरीय दूतो से विमुख(काफिर)होने की नीति अपनाकर जीवन व्यतीत करते हैं ।
ईसाई धर्म बाइबिल पर ईसाई धर्म एक ही ईश्वर को मानते हैं, पर उसे त्रिमूर्ति के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा ।
बौद्ध धर्म ईश्वर के बारे में ख़ामोश है । इसके बजाय बौद्ध धर्म और कर्म के सिद्धान्तों को मानते है, ये किसी ईश्वर अल्लाह पर निर्भर नही है तो क्या वो नास्तिक धर्म है! धर्म भी नास्तिक होते हैं क्या! ये सारी झंझट पश्चिमी या अब्राहमिक धर्मो मे है पूर्व मे नही! कृष्णा और बुद्ध का मार्ग अलग है लेकिन भीतरी अनुभव वही है! कृष्ण कहते हैं की परमात्मा की शरण मे जाओ! बुद्ध कहते हैं किसी की जरूरत नही, अप्पो दीपो भव, अपना प्रकाश खुद जलाएं! कबीर भी कहते हैं "तेरा साई तुझमे है तू जाग सके तो जाग"! किसी सूफ़ी ने भी कहा है की "जर्रे जर्रे मे उसी का नूर है"! हिन्दू भी यही कहता है की कण कण मे परमात्मा बस्ता है! पश्चिम के धर्मो ने एक मुहम्मद, एक मूसा और एक ईसा पैदा किया! और यहाँ भारतिया उपमहाद्वीप मे कितने ही अवतार हुए, कितने बुद्ध हुए, कितने ही तीर्थंकर हुए, कितने गुरु हुए, कितने ही भक्त हुए क्योंकि यहाँ नास्तिक और आस्तिक मे कभी भेदभाव नही रहा! और साधना की विधि भी तंत्र वही विविध रूपी माला जिसे हमने सभी धर्म में वही गंडे ताबीज हमारे यन्त्र साधना चिल्ला के करो मौन रह के अगर बत्ती जलाओ या मोम बत्ती ./

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