Friday, May 6, 2011

नेपाली बाबा

परम आदरणीय गुरूजी/मोहिनिजी
मुझे दुःख है परसों मैं आपको एम्.पी.नगर अकेला छोडकर चला गया, लेकिन मैं कर्त्तव्य और अनुज्ञा से बंधा इंसान हूँ आपके आदेश या मेरी जुगुप्सा पुनःएक बार आपके पास खीच ले गई लेकिन मिला वही जो हर बार आपके यहाँ जाने पैर होता है आप तो दिव्या भाव के वो साधक है जो मायावी दुनिया के बंधनों से उपर है विरले ही वहा पहुचते है लेकिन यह सबके बस की बात नहीं जिसे आपका साथ लंबे समय के लिए मिले आपको समझे आपका सानिध्य मिलना ही बहुत बड़ी बात है फिर आपसे कुछ ले लेना आसम्भाव असाध्य ही नहीं मुश्किल जरुर है इसे भी मै स्वीकार करता हू क्योकि अर्जुन या एकलव्य को चाहते हुए भी दुर्योधन के साथ रहना द्रोणाचार्य की मज़बूरी थी फिर आपने स्वीकार किया की मै आद्यात्मिक गुरु नहीं हू ये तो लोगो ने मेरा नाम रख दिया आपकी सहजता प्रेम गुणों का मै कायल हू मैंने जीवन में वही चाहा जिसकी मुझे आवस्यकता थी मिलना न मिलना नियति समझ केर स्वीकार किया
साधना सौंदर्य गुण इनका बखान और प्रदर्शन मौके पैर करना ही निति है मान अपमान मीठा और कड़वा सबको सामान भाव से लेना सिमित साधनों से लड़ाई लड़ना ही साधना है.मेरे गुरु ने यही बताया हम इंगित /प्रतिबंधित तो केर सकते है परिपालन नहीं करा सकते
मुझे गर्व है आपको विद्या आती है इसका लाभ लोग ले नहीं पीये लोगो को सहेजना भी नहीं आया मेरे समझ से इसका कारन यह भी रहा लोग लंबे समय तक चल नहीं पाए आपके साथ या चलने नहीं दिया भुत में जो कुछ हुआ हो भविष्य की डगर कठीन है शेर बुडा हो गया है कंगन के पीछे बहुत लोग जान गवां चुके है कोई अर्जुन दुर्योधनभी नहीं जो युद्ध के अंत में शोक मनाये कर्ण जिसको आपने मान सम्मान सब कुछ दिया मारा जा चूका है शकुनी को विदुरनीति से कोई मतलब नहीं
योगनुसंधन केंद्र का मतलब गुरूजी (मोहिनिजी रमन अस्थायी )बाकि सभी पात्र कभी भी बदल्सकते है
YOG CONFIDRATION OF INDIA का मतलब विजय तिवारी & पार्टी
अगला महोत्सव मानाने की तयारी शुरू हो चुकी है पतंजली की मूर्ति धुप में कह रही है काश
पीताम्बरा के यज्ञशाला में ही बिठा दिया होता लेकिन यह याचना या सुनवाई शासन करे जनता या समिति जिसने आयोजन किया था
पीताम्बर तो भाग गए परिपूर्ण होके पाच गाय मिली दक्षिणा में अस्वस्थामा दुध पिएगा यज्ञ आगामी महोत्सव में नेपाली बाबा अवघड बाबा
या जोई कोई मिल जाये केर ही लेगा वैसे दुधना पड़ेगा वो सब कहाँ ??
पतंजली तो पता नहीं कहा है कैसे है लेकिन लिखने और शोध करने वाले बुड्ढे सठिया जरुर गए उन्हें अपने भविष्य की भी चिंता नहीं
अपना तो स्वस्थ ठीक नहीं दूसरों का ठीक करने में लगे है ये तो पताजली का लेख से लेकर मूर्ति स्थान सब पैर शोध करते रहे अपने लिए क्या किया कुछ सोचा ही नहींखुस हो गए सुन के हम है ना??
भावी पीढ़ी के पास समय नहीं है न आप चाहेगे सभी एक सुर से कह रहे हैआपका समय हो गया आराम करो नहीं तो सभी बुद्धो को पहाड पैर छोड़ दिया जायेगा
भला हो इन्टरनेट का पहले चिठी पहुचने में समय लगता था आब तुरंत पहुच जती हैआब ये बात अलग है की आपने को कब मिलती है क्योकि पढ़े लिखे होकर भी अनपढ़ हो गए है . शेष अगले पत्र में कहने को बहुत कुछ है करना भी है पैर लोग करने दे तब न?? देखने और सुनने वाले भी यही बुढ्हे हैं बस चुप रहे कही ऐसा न हो खेले न खेलने दे खेल ही बिगाड़े???

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